सत्तासीन दल में चल रहे शीतयुद्ध को शांत करने का तरीका”कैबिनेट मंत्री”पद??
पार्टी सरकार में सामंजस्य बनाने में दिल्ली से लेकर दून के तार मिल रहे

देहरादून। राज्य में सत्तारूढ़ दल में अभी तक अंदरूनी खींचतान के लिए पहली सरकार में स्वामी को लेकर विरोध जताया गया था फिर कांग्रेस सरकार में तिवारी जी के समय में हरीश रावत का नाम खींचतान में आता था। खंडूरी साहबके कार्यकाल में भी हटने का दंश झेला गया निशंक भी ज्यादा टिक नहीं पाए खंडूरी को कुछ समय के लिए फिर कुर्सी पर बैठाया गया इसके बाद फिर विजय बहुगुणा जब कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री बने तो फिर मुखर होकर हरीश ने पार्टी में अपना विरोध जताया था। ये बाद में बहुगुणा को बदल हाईकमान के निर्णय से मुख्यमंत्री भी बने। फिलहाल ये परिस्थितियां पिछले कुछ समय से बन रही हैं जो तीव्र हो गई हैं। 2022के सरकार गठन से अब तक खाली पदों को लेकर पार्टी अध्यक्ष एवं राज्य प्रभारी कई बार बयान देकर सत्ता के विधायकों को एक प्रकार से लॉलीपॉप दे चुके हैं। लगभग अगले विधान सभा चुनाव के लिए डेढ़ साल रह गया है जो 2027के संभवतः फरवरी माह में होगा। संगठन ने दायित्वों को देकर अपने कार्यकर्ताओं को नवाजा लेकिन महत्वपूर्ण केबिनेट मंत्री को लेकर अनुभवी विधायक गणों का सब्र शायद बाहर आता भी दिख रहा है जब अंदरुनी शीत युद्ध तीन पूर्व मुख्यमंत्रीयो तीरथ सिंह रावत एवं त्रिवेंद्र सिंह रावत के बयानों से सामने आया। विपक्ष की चुटकियों से लगता है कि अभी तक खाली पदों के चलते से सरकार विकास कर रही है तो इतने कम समय में मंत्री बनाने से क्या फायदा होगा। किन्तु खींचातानी से लग रहा है कि हाईकमान का निर्णय होना कि पांच पदों को भरने में कौन सा फार्मूला बनाया जाय सबसे बड़े जनपद में दायित्वों को छोड़कर सरकार में कोई केबिनेट मंत्री नहीं है तो बेलेंस बनाने को लेकर कवायद हो रही होगी जिसमें दो मंडलों, फिर उसमें जनपदों से यही नहीं मुख्यमंत्री ओर अध्यक्ष कहां कहां से बराबरी बनाने के लिए सोच चल रही होगी ऐसा लोगों का मानना है। संगठन में चल रहे शीतयुद्ध को शांत करने के लिए विधायकों को संतुष्ट करने का तरीका सही लगा है । हो सकता है महिलाओं का आंकड़ा भी बढ जाय परन्तु देखना है कि धाकड़ धामी सरकार में यदि पद बंटवारा हुआ तो किस किस पर ये कृपा बरसेगी? विधायकों की परिक्रमा तो जारी है।